इस्लाम में परदा और नारी की हैसियत

सामूहिक जीवन में औरत और मर्द का संबंध किस तरह होना चाहिए, यह इंसानी सभ्यता की सब से अधिक पेचीदा और सब से अहम समस्या रही है, जिसके समाधान में बहुत पुराने ज़माने से आज तक दुनिया के सोचने-समझने वाले और विद्वान लोग परेशान हैं, जबकि इसके सही और कामयाब हल पर इंसान की भलाई और तरक्क़ी टिकी हुई है। इतिहास का पन्ना पलटने से पता चलता है कि प्राचीन काल की सभ्याताओं से लेकर आज के आधुनिक पिश्चमी सभ्यता तक किसी ने भी नारी के साथ सम्मान और और न्याय का बर्ताव नहीं किया है! वह सदैव दो अतियों के पाटन के बीच पिसती रही है। इस घोर अंधेरे में उसको रौशनी एक मात्र इस्लाम ने प्रदान किया है, जो सर्व संसार के रचयिता का एक प्राकृतिक धर्म है, जिस ने आकर नारी का सिर ऊँचा किया, उसे जीवन के सभी अधिकार प्रदान किये, समाज में उसका एक स्थान निर्धारित किया और उसके सतीत्व की सुरक्षा की.. इस पुस्तक में इतिहास से मिसालें दे कर यह स्पष्ट किया गिया है कि दुनिया वालों ने नारी के साथ क्या व्यवहार किया और उसके कितने भयंकर प्रमाण सामने आये, इसके विपरीत इस्लाम धर्म ने नारी को क्या सम्मान दिया, उसकी नेचर के अनुकूल उसके लिये जीवन में क्या कार्य-क्षेत्र निर्धारित किये, उसके के रहन-सहन के क्या आचार नियमित किये तथा सामाजिक जीवन में मर्द और औरत के बीच संबंध का किस प्रकार एक संतुलित व्यवस्था प्रस्तुत किया जिसके समान कोई व्यवस्था नहीं। विशेष कर नारी के परदा (हिजाब) के मुद्दे को विस्तार रूप से उठाया गया है और इसके पीछे इस्लाम का उद्देश्य क्या है? उसका खुलासा किया गया है, तथा जो लोग नारी के परदा का कड़ा विरोध और उसका उपहास करते हैं, इसके पीछा उनका उद्देश्य क्या है और यह किस प्रकार उनके रास्ते का काँटा है, इस से भी अवगत कराया गया है। कुल मिलाकर वर्तमान समय के हर मुसलमान बल्कि हर बुद्धिमान को इस पुस्तक का अध्ययन करना चाहिए।
इस्लाम में परदा और नारी की हैसियत

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About the book

Author :

أبو الأعلى المودودي

Publisher :

www.islamland.com

Category :

Women in Islam