फतवा के बारे में

तारीख :

Fri, May 22 2015
प्रश्न

बैठक के बाद यहूदी या ईसाई से हाथ मिलाने का हुक्म

हाल ही में मुझे एक काम मिला है और मैं यहूदियों की एक बड़ी संख्या के बीच काम करता हूँ। इसी तरह मुझे इन लोगों के साथ बैठकों में भाग लेना पड़ता है और बैठक के अंत में, मैं इन से मुसाफहा करता (हाथ मिलाता) हूँ, तो क्या यह जाइज़ है ॽ कुछ यहूदी लोग जानते हैं कि मैं मुसलमान हूँ इसी लिए वे कभी कभार मुझसे हाथ नहीं मिलाते हैं और उस समय मैं बहुत खुश होता हूँ , तो क्या केवल सम्मान दिखाने के तौर पर उनसे हाथ मिलाना जाइज़ है या नहीं ॽ
उत्तर
उत्तर

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

सहीह हदीस यहूदियों और ईसाईयों से सलाम में पहल करने के निषेद्ध पर तर्क स्थापित करती है, जैसाकि मुस्लिम ने अपनी सहीह (हदीस संख्या : 2167) में अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “यहूदियों और ईसाईयों से सलाम करने में पहल न करो।”

तथा हदीस इस बात पर तर्क स्थापित करती है कि यदि वे सलाम करें तो उनका जवाब दिया जायेगा, जैसाकि बुखारी (हदीस संख्या : 6257) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 2164) ने अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जब यहूद तुम से सलाम करते हैं तो उनमें से एक व्यक्ति “अस्सामो अलैक” (अर्थात तुम पर मौत आए) कहता है, तो तुम (जवाब में) कहो : “व अलैक” (अर्थात तुम पर भी)।”

यही बात मुसाफहा करने (हाथ मिलाने) में कही जायेगी, यदि वह मुसाफहा करने के लिए अपना हाथ बढ़ाता है तो हम उस से मुसाफहा करेंगे।

शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने फरमाया :

“इब्नुल क़ैयिम रहिमहुल्लाह ने फरमाया : “यदि यह कारण समाप्त हो जाए, और यहूदी या ईसाई कहे : “सलामुन अलैकुम व रहमतुल्लाह” (अर्थात तुम्हारे ऊपर अल्लाह तआला की शांति और दया हो) तो सलाम के अंदर न्याय यही है कि उसे उसके सलाम के समान जवाब दिया जाए।” किताब “अहकाम अहलिज़्ज़िम्मा” (1 / 200) से समाप्त हुआ।

तथा सहीह बुखारी में इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जब यहूद तुम से सलाम करते हैं तो उनमें से एक व्यक्ति “अस्सामो अलैकुम” (अर्थात तुम पर मौत आए) कहता है, तो तुम (जवाब में) कहो : “व अलैक” (अर्थात तुम पर भी)।” अस्साम का अर्थ मौत है।

और यदि वह मुसाफहा के लिए तुम्हारी तरफ अपना हाथ बढ़ाए तो तुम भी उसकी तरफ अफना हाथ बढ़ाओ, अन्यथा तुम उस से आरंभ न करो।” (अंत).

तथा उनके संपूर्ण कलाम (बात) को प्रश्न संख्या : (43154) के उत्तर में देखा जा सकता है, इसी तरह फायदा के लिए प्रश्न संख्या : (59879) के उत्तर में देखा जा सकता है।

और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।