फतवा के बारे में

तारीख :

Fri, May 22 2015
प्रश्न

क्या अपने पति से तलाक़ मांगने वाली पत्नी पर धिक्कार होने के बारे में कोई हदीस है ?

उस हदीस की प्रामाणिकता क्या है कि जो पत्नी अपने पति से तलाक़ मांगती वह धिक्कृत है ?
उत्तर
उत्तर

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

औरत के लिए जायज़ नहीं है कि वह तलाक़ की मांग करे सिवाय इसके कि उसका कोई कारण मौजूद हो, जैसे पति की ओर से दुर्व्यवहार ; क्योंकि अबू दाऊद (हदीस संख्या : 2226), तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 1187) और इब्ने माजा (हदीस संख्या : 2055) ने सौबान रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जिस महिला ने भी अपने पति से अकारण तलाक़ की मांग की तो उसके ऊपर स्वर्ग की सुगंध हराम है।” इस हदीस को अल्बनी ने सहीह अब दाऊद में सही कहा है।

तथा उक़बा बिन आमिर रज़ियल्लाहु अन्हु से मरफूअन् रिवायत है कि : “खुलअ़् मांगने वाली महिलाएं निफाक़ वालियाँ हैं।” 

इसे तबरानी ने मोजमुल कबीर (14/339) में रिवायत किया है और अल्बानी ने सहीहुल जामे (हदीस संख्या : 1934) में इसे सही कहा है।

जहाँ तक ऐसा करनेवाली औरत पर धिक्कार करने की बात है, तो इस शब्द के साथ हमें कोई हदीस नहीं मिली है।

तथा औरत के लिए तलाक़ या खुलअ मांगना् जायज़ है यदि इसका कोई कारण मौजूद है, क्योंकि बुखारी (हदीस संख्या : 4867) ने इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि साबित बिन क़ैस की पत्नी नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आईं और कहने लगीं : ऐ अल्लाह के पैगंबर ! मैं साबित बिन क़ैस के आचरण और धर्म पर दोष नहीं लगाती हूँ, परंतु मैं इस्लाम में कुफ्र (नास्तिकता) को नापसंद करती हूँ। तो अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ‘‘क्या तुम उसे उसका बागीचा लौटा सकती हो ? उसने कहा: जी हाँ। अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने (साबीत से) फरमाया : बागीचा ले लो और इसे एक तलाक़ दे दो।’’

उनका कथन : “परंतु मैं इस्लाम में कुफ्र को नापसंद करती हूँ” का मतलब यह है कि मैं ऐसे काम नापसंद करती हूँ जो इस्लाम के आदेश के विरूद्ध हैं जैसे कि पति से द्वेष रखना, उसकी अवज्ञा करना, उसके हुक़ूक़ की अदायगी न करना . . . इत्यादि। देखिए : फत्हुल बारी (9/400).

शैख इब्ने जिब्रीन हफिज़हुल्लाह ने खुलअ मांगने को उचित ठहराने वाली चीज़ों का उल्लेख करते हुए फरमाया : अगर औरत अपने पति की नैतिकता (आचार) को नापसंद करे जैसे कि वह सख्त, कठोर, तीव्र, शीघ्र प्रभावित होनेवाला, अधिक गुस्सा करनेवाला, और साधारण बात पर आलोचना करनेवाला, और छोटी सी कमी पर रोष करनेवाला है तो उसके लिए खुलअ मांगना जायज़ है।

दूसरा : अगर वह उसकी बनावट (आकृति) को नापसंद करे जैसे कि उसके अंदर कोई दोष (त्रुटि), या विकृति हो या उसकी इंद्रियों में कोई कमी हो तो उसके लिए खुलअ् का अधिकार है।

तीसरा : यदि नमाज़ छोड़ने, या जमाअत के साथ नमाज़ में लापरवाही करने, या रमज़ान में बिना शरई कारण (उज़्र) के रोज़ा तोड़ देने, या हराम चीज़ों जैसे व्यभिचार, नशा, संगीत सुनने, मनोरंजन इत्यादि में उपस्थ्ति होने की वजह से उसकी दीनदारी (धर्मनिष्ठा में कमी पाई जाती है तो उसके लिए खुलअ लेना जायज़ है।

चौथा : यदि वह खर्च या कपड़ा या ज़रूरी आवश्यकताओं से उसका अघिकार रोक दे, तो उसके लिए खुलअ मांगने का अधिकार है।

पाँचवां : यदि वह नपुंसकता, या उसमें रूचि न रखने, या किसी दूसरी की ओर झुकाव की वजह से उसे सामान्य सहवास का अधिकार नहीं देता है जिससे उसे पवित्रता व इंद्रिनिग्रह प्राप्त हो, या रात बिताने में न्याय से काम न ले तो औरत खुलअ मांग सकती है, और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।’’ अंत हुआ। तथा प्रश्न संख्या (1859) का उत्तर देखिए।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।