फतवा के बारे में

तारीख :

Mon, Oct 27 2014
प्रश्न

पगड़ी के साथ नमाज़ पढ़ने की फज़ीलत में कोई हदीस सह़ीह़ नहीं है

इस हदीस का क्या हुक्म है कि : (पगड़ी के साथ दो रक्अत नमाज़ पढ़ना बिना पगड़ी के सत्तर रक्अत से बेहतर है) ॽ
उत्तर
उत्तर
उत्तर : हर प्रकार की प्रशंसा और स्तुति केवल अल्लाह के लिए योग्य है। यह हदीस जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत की जाती है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “पगड़ी के साथ दो रक्अत नमाज़ बिना पगड़ी के सत्तर रक्अत से बेहतर है।” इस हदीस को दैलमी ने “मुसनदुल फिरदौस” (2 / 265, हदीस संख्या : 3233) में रिवायत किया है और सुयूती ने “अल-जामिउल कबीर” (हदीस संख्या : 14441) में इसे अबू नुएैम की ओर मंसूब किया है, किंतु इसका पता नहीं चलाया जा सका। मुनावी रहिमहुल्लाह - अल्लाह उन पर दया करे -फरमाते हैं : “उनसे इस हदीस को अबू नुएैम ने भी रिवायत किया है -और उन्हीं के तरीक़ से और उन्हीं से दैलमी ने लिया है - फिर यह बात भी है कि इसमें एक रावी तारिक़ बिन अब्दुर्रहमान हैं जिन्हें ज़हबी ने “ज़ुअफा” के अंदर उल्लेख किया है और फरमाया : नसाई ने कहा : वह मज़बूत नहीं हैं। तथा इसमें एक रावी मुहम्मद बिन अजलान हैं जिन्हें बुखारी ने “ज़ुअफा“ में ज़िक्र किया है और हाकिम ने फरमाया : उनका हाफिज़ा (स्मरण क्षमता) कमज़ोर है।” संक्षेप के साथ समाप्त हुआ। “फैज़ुल क़दीर” (4 / 49) इस आधार पर, उक्त हदीस बहुत कमज़ोर है उसे वर्णन करना जाइज़ नहीं है सिवाय इसके कि उसकी कमज़ोरी को स्पष्ट किया जाय ताकि लोग उस से बच सकें। इसी तरह विद्वानों ने भी उस पर रद्द कर देने और स्वीकार न करने का हुक्म लगाया है : चुनाँचे सखावी रहिमहुल्लाह ने फरमाया : “यह प्रमाणित नहीं है।” (अंत) “अल-मक़ासिदुल हसनह” (पृष्ठ / 406). तथा शैख अल्बानी रहिमहुल्लाह ने फरमाया : “मौज़ू (मनगढ़ंत) है।” (अंत हुआ). “अस्सिलसिलतुज़ ज़ईफा” (संख्या / 128, 5699). तथा शैख अहमद अल-आमिरी (मृत्यु 1143 हिज्री) ने किताब “अल-जद्दुल हसीस फी बयाने मा लैसा बि-हदीस” (पृष्ठ / 126) तथा शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह ने फरमाया : “इस खबर (सूचना) का कोई आधार नहीं है, वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर झूठ गढ़ी हुई है उसकी कोई असल नहीं है।” (अंत) http://www.binbaz.org.sa/mat/11590 तथा शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने फरमाया: यह हदीस बातिल (व्यर्थ) मनगढ़ंत और अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर झूठ गढ़ी हुई है, और पगड़ी -अपने अलावा अन्य कपड़ों के समान - लोगों की आदतों के अधीन है, यदि आप ऐसे लोगों के बीच हैं जो पगड़ी पहनने के आदी हैं तो आप भी उसे पहनें, और अगर आप ऐसे लोगों के बीच हैं जिनकी आदत पगड़ी पहनने की नहीं है बल्कि वे गुत्रा (अरबी रूमाल) पहनते हैं या वे अपने सिर को बिना किसी चीज़ से ढके हुए रखते हैं तो आप भी वैसा ही कीजिए जैसे वे लोग करते हैं।” (अंत). “फतावा नूरून अलद दर्ब” http://www.ibnothaimeen.com/all/noor/article_6894.shtml तथा प्रश्न संख्या (68815) काउत्तर देखें। और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।