Питање

यह कहने का हुक्म कि काफिरों का व्यवहार मुसलमानों के व्यवहार से श्रेष्ठतर है

क्या एक मुसलमान के लिए यह कहना जाइज़ है कि कुछ काफिरों का शिष्टाचार (व्यवहार) कुछ मुसलमानों से अच्छा है ॽ
Одговор
Одговор

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

यदि उसने - सामान्य तौर पर - यह कहा कि काफिरों का व्यवहार व आचार मुसलमानों के व्यवहार व आचार से श्रेष्ठतर है, तो कोई संदेह नहीं कि ऐसा कहना हराम है, बल्कि ऐसा कहने वाले व्यक्ति से तौबा करवाया जायेगा, क्योंकि मूल व्यवहार और सबसे महत्वपूर्ण शिष्टाचार अल्लाह सर्वशक्तिमान के साथ व्यवहार और उसके साथ शिष्टाचार और उसके अलावा की उपासना व पूजा को त्याग कर देना है, और यह बात केवल मुसलमानों के अंदर ही पाई जाती है, काफिरों में नहीं। तथा इसमें सभी मुसलमानों पर एक सर्वसामान्य हुक्म लगाया गया है, हालांकि आवश्यक रूप से कुछ मुसलमान ऐसे हैं जो इस्लाम के शिष्टाचार पर और अल्लाह की शरीअत पर क़ायम हैं।

जहाँ तक कुछ काफिरों के शिष्टाचार को कुछ मुसलमानों के शिष्टाचार पर प्रतिष्ठा देने की बात है तो यह गलत है, क्योंकि काफिरों के दुष्टाचार के लिए यह काफी है जो कुछ उन्हों ने अपने पालनहार सर्वशक्तिमान अल्लाह और उसके पैगंबरों अलैहिमुस्सलाम (उन सब अल्लाह की शांति हो) के साथ किया है, चुनांचे उन्हों ने अल्लाह को गालियाँ दीं और उसके लिए बेटा होने का दावा किया, उसके संदेष्टाओं को दोषारोपित किया और उन्हें झुठलाया। तो लोगों के साथ कौन सा व्यवहार और आचरण उन्हें लाभ देगा यदि उन के आचार अल्लाह के साथ सबसे बुरे और दुष्ट हैं। फिर हम कैसे दस या सौ काफिरों के व्यवहार को देखकर यह हुक्म लगा देते हैं कि उनके व्यवहार अच्छे हैं, और उनमें से अक्सर यहूदियों और ईसाईयों के व्यवहार व आचार को भूल गए। चुनाँचे उन्हों ने मुसलमानों के साथ कितना विश्वास घात किया, उनके घरों को कितना सर्वनाश किया, उन्हें कितना दीन के प्रति प्रशिक्षण में डाला, कितना उनकी संपत्तियों को नष्ट किया, कितना उनके साथ चालबाज़ी और धोखाधड़ी किया, उनके घात में रहे, अहंकार और विद्रोह किया . . .

उनके कुछ लोगों की अच्छी नैतिकता उनके अक्सर लोगों की बुरी नैतिकता के सामने कुछ भी नहीं है, साथ ही यह बात भी है कि वे अपनी इस नैतिकता से मात्र नैतिकता नहीं चाहते हैं, बल्कि इस से उनका उद्देश्य अधिकांश मामलों में अपने आप को लाभ पहुँचाना, अपने दुनिया के मामलों को ठीक करना और अपने हितों को प्राप्त करना होता है।

शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह से एक प्रश्न करने वाले के बारे में पूछा गया जो मुसमलान श्रमिकों और गैर मुसलमान श्रमिकों के बीच तुलना करते हुऐ कहता है : गैर मुस्लिम लोग ईमानदार हैं और मैं उन पर भरोसा कर सकता हूँ, तथा उनकी मांगें कम हैं, और उनके काम कामयाब व सफल हैं, लेकिन वे (यानी मुसलमान) लोग बिल्कुल इसके विपरीत हैं, तो इस बारे में आपकी राय क्या है ॽ

तो उन्हों ने उत्तर दिया :

ये लोग सच्चे मुसलमान नहीं हैं, ये इस्लाम का मात्र दावा करते हैं। रही बात सच्चे मुसलमानों की तो वे काफिरों से अधिक सच्चे, उनसे अधिक ईमानदार और उनसे अच्छे और अधिक योग्य हैं। और आप ने जो यह बात कही है वह गलत है, आपके लिए ऐसा कहना उचित नहीं है, काफिर लोग जब तुम्हारे पास सच्चाई से काम लेते हैं और अमानत की अदायगी करते हैं तो यह इसलिए करते हैं ताकि तुम्हारे साथ अपने हितों को पा सकें, और ताकि हमारे मुसलमान भाईयों से माल को ले सकें। तो यह उनकी मसलहत (हित) के लिए है, उन्हों ने इसे तुम्हारे हित के लिए नहीं ज़ाहिर किया है बल्कि उन्हों ने अपने हित के लिए ज़ाहिर किया है, ताकि वे माल को ले सकें और ताकि तुम उनके अंदर रूचि रखो।

अतः तुम्हारे ऊपर अनिवार्य यह है कि तुम केवल अच्छे मुसलमानों को काम के लिए आवेदित करो, और यदि तुम मुसलमानों को ठीक न देखो तो उन्हें नसीहत करो और समझाओ, अगर वे सुधर जाते हैं तो ठीक है, अन्यथा उन्हें उनके स्वदेश लौटा दो और उनके अलावा को रोज़गार के लिए भर्ती करो। तथा तुम उस एजेंट से जो तुम्हारे लिए (श्रमिकों को) चुनता) है, ऐसे लोगों को चुनने के लिए कहो जो अच्छे हैं और ईमानदारी, नमाज़ और इस्तिक़ामत के साथ प्रसिद्ध हैं, किसी को भी न चुन ले।

इसमें कोई शक नहीं कि यह शैतान का धोखा है कि वह तुम से कहता है कि : ये काफिर लोग मुसलमानों से अच्छे हैं, अधिक ईमानदार हैं, और ऐसे और ऐसे हैं। यह सब इसलिए है कि अल्लाह का दुश्मन और उसके सिपाही यह जानते हैं कि काफिरों को काम करने के लिए भर्ती करने और मुसलमानों के बजाय उनसे सेवा लेने में कितनी बड़ी बुराई है ; इसीलिए वह उनके प्रति उनके अंदर रूचि पैदा करता है, और उनको काम के लिए बुलाने को तुम्हारे लिए संवारता और सजाता है ताकि तुम मुसलमानों को छोड़ दो, और ताकि तुम दुनिया को आखिरत पर प्राथमिकता देते हुए अल्लाह के दुश्मनों को काम के लिए बुलाओ। वला हौला वला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाह।

तथा मुझे सूचना मिली है कि कुछ लोग कहते हैं: मुसलमान लोग नमाज़ पढ़ते हैं और नमाज़ के कारण काम को स्थगित कर देते हैं, और काफिर लोग नमाज़ नहीं पढ़ते हैं इसिलए अधिक काम करतें हैं। तो यह भी पहले ही के समान है, और यह बहुत बरी आपदा और मुसीबत है कि वह मुसलमानों पर नमाज़ के कारण दोष लगाए और काफिरों को भर्ती करे इसलिए कि वे नमाज़ नहीं पढ़ते हैं, तो फिर ईमान कहाँ है ॽ  तक़्वा कहाँ है ॽ अल्लाह से खौफ कहाँ है ॽ कि आप नमाज़ के कारण अपने मुसलमान भाईयों पर ऐब लगाते हैं ! हम अल्लाह तआला से सुरक्षा और बचाव का प्रश्न करते हैं।” “फतावा नूरुन अलद् दर्ब”

तथा शैख उसैमीन रहिमहुल्लाह से काफिरों को सच्चाई, ईमानदारी और अच्छे काम करने से विशिष्ट करने के बारे में प्रश्न किया गया :

तो उन्हों ने उत्तर दिया :

यदि ये व्यवहार सही हैं तो इसके साथ उनके अंदर झूठ, छल, धोखा, सेंधमारी कुछ इस्लामी देशों से अधिकतर पाई जाती है, और यह बात सर्वज्ञात है। लेकिन अगर ये सही हैं तो ये ऐसे व्यवहार और नैतिकता हैं जिनकी ओर इस्लाम आमंत्रति करता है, और मुसलमान इस से सुसज्जित होने के अधिक योग्य हैं ताकि वे इसके कारण अच्छे व्यवहार के साथ अज्र व सवाब प्राप्त कर सकें। रही बात काफिरों की तो वे इस से मात्र सांसारिक चीज़ चाहते हैं। अतः वे मामले में सच्चाई से काम लेते हैं ताकि लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर सकें। लेकिन मुसलमान यदि इन चीज़ों से सुसज्जित होता है तो भौतिक चीज़ के अलावा एक शरई और धार्मिक चीज़ भी चाहता है और वह ईमान और अल्लाह सर्वशक्तिमान की ओर से पुण्य प्राप्त करना है, और यही मुसलमान और काफिर के बीच अंतर है।

जहाँ तक काफिर देशों में, चाहे वे पश्चिमी हों या पूर्बी, सच्चाई का गुमान किया गया है, तो यदि यह सही है तो उसमें पाई जाने वाली बुराईयों के अपेक्षाकृत बहुत कम हैं, और यदि इनमें से केवल यही बात होती कि उन्हों ने एक हक़ का इनकार कर दिया जो सबसे महान हक़ है और वह अल्लाह सर्वशक्ति मान का हक है, - “निःसंदेह शिर्क सबसे बड़ा पापा है” - । तो ये लोग जितना भी अच्छा काम करें वह उनके पापों, कुफ्र, अत्याचार के मुकाबले में कुछ भी नहीं, अतः उनके अंदर कोई भलाई नहीं है।” “मजमूउल फतावा”  3

तथा शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्य ने फरमाया : ज़िम्मियों से किसी काम के करने या लिखवाने में मदद नहीं ली जायेगी, क्योंकि इस से बुराईयाँ जन्म लेती हैं या उसका कारण बनता है। तथा इमाम अहमद से अबू तालिब की रिवायत में खिराज के समान चीज़ के बारे में पूछा गया तो उन्हों ने कहा : “उनसे किसी चीज़ में मदद नहीं ली जायेगी।” अल फतावा अल कुबरा 5/539.

तथा फत्हुल अली अल-मालिक फिल फत्वा अला मज़हबिल मालिक में आया है : “काफिर को मुसलमान पर प्राथमिकता देना यदि धर्म की दृष्टि से है तो वह नास्तिकता है, अन्यथ नहीं।” (2/348).

तथा प्रश्न संख्या : 13350 देखिए।

और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।