Дар бораи Fatwa

Сана :

Fri, May 22 2015
Савол

आखिरत (परलोक) के दिन में विश्वास रखने की वास्तविकता

आखिरत के दिन (अंतिम दिवस) में विश्वास रखने का क्या मतलब है ?
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हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए योग्य है।

अल्लाह की प्रशंसा और गुणगान के बाद : यह बात जान लो - अल्लाह तआला आप को अपने आज्ञापालन की तौफीक़ प्रदान करे - कि "आखिरत के दिन में विश्वास" का मतलब यह है कि :

मृत्यु के पश्चात घटने वाली जिन चीज़ों के बारे में अल्लाह तआला ने अपनी किताब में सूचना दी है और जिनके बारे में उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सूचना दी है उन समस्त चीज़ों के घटित होने में दृढ़ विश्वास रखना। आख़िरत के दिन पर ईमान लाने में क़ियामत के लक्षणों पर ईमान लाना भी सम्मिलित है जो उस से पहले घटित होंगे, तथा मृत्यु और उस के साथ पेश आने वाली जांकनी की दशायें, और मृत्यु के बाद क़ब्र के परीक्षण और उसकी यातना और समृद्धि में विश्वास रखना, और सूर फूँकने (नरसंघा में फूँक मारे जाने), पुनर्जीवन, क़ियामत के दिन की हवलनाकियों (भयप्रद चीज़ों), मैदाने-मह्शर और हिसाब व किताब के विवरण पर ईमान रखना, तथा स्वर्ग और उसकी समृद्धि में विश्वास रखना जिस में सब से सर्वोच्च सर्वशक्तिमान अल्लाह के चेहरे की ओर देखना है, तथा नरक और उसकी यातना पर ईमान रखना जिसकी सब से गंभीर यातना नरकवासियों का अपने सर्वशक्तिमान पालनहार के चेहरे की ओर देखने से वंचित कर दिया जाना है। तथा इस विश्वास और आस्था के अनुसार कार्य करना।

जब किसी व्यक्ति के दिल में यह विश्वास संपूर्ण रूप से स्थापित हो जाता है तो इस के फलस्वरूप उसे महान लाभ और फायदे प्राप्त होते हैं, जिन में से कुछ निम्नलिखित हैं :

पहला : उस दिन के पुरस्कार और प्रतिफल की आशा रखते हुये आज्ञाकारिता और नेकी काम में रूचि और उनके लिए उत्सुकता पैदा होना।

दूसरा: उस दिन की यातना और सज़ा के डर से अवज्ञा और पाप के कामों को करने और उन पर आनंदित होने से भय और डर पैदा होना।

तीसरा: एक मोमिन व्यक्ति से जो दुनिया की नेमत और समृद्धि छूट गयी है उसे परलोक की नेमत और उसके पुरस्कार की आशा रखने के कारण तसल्ली मिल जाती है।

हम सर्वशक्तिमान महान अल्लाह से विनती करते हैं कि वह हमें सच्चा ईमान और सुदृढ़ विश्वास प्रदान करे .. आमीन।

देखिये : आलामुस्सुन्नह अल मन्शूरह (सुन्नत के लहराते झंडे) पृष्ठ संख्या : 110, शैख इब्ने उसैमीन की किताब शर्हुल उसूलिस्सलासह (98-103)

शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद