فتوا کے بارے میں

تاریخ :

Wed, Oct 29 2014
سوال

रमज़ान की फज़ीलत में एक ज़ईफ हदीस का वर्णन

क्या वह हदीस सहीह है जो सलमान अल-फारिसी रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : (अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने शाबान के अंतिम दिन में हमें भाषण देते हुए फरमाया : ऐ लोगो, तुम्हारे ऊपर एक महान बर्कत वाले महीने ने छाया किया है, ऐक ऐसा महीना जिसमें एक रात ऐसी है जो एक हज़ार महीने से बेहतर है, अल्लाह तआला ने उसके रोज़े को अनिवार्य किया है और उसकी रात के क़ियाम को स्वैच्छिक क़रार दिया है, जिस व्यक्ति ने उसमें किसी भलाई के काम के द्वारा (अल्लाह की) निकटता तलाश किया तो वह ऐसे ही है जैसे किसी ने उसके अलावा में कोई फरीज़ा अदा किया, और जिसने इस महीने में कोई फर्ज़ अदा किया तो वह ऐसे ही है जैसे किसी ने उसके अलावा में सत्तर फरीज़ा अदा किया, और इस महीने का पहला हिस्सा रहमत है, उसका मध्य हिस्सा मग़्फिरत (क्षमा) है और उसका अंतिम हिस्सा नरक से मुक्ति है ... हदीस के अंत तक).
جواب
جواب
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है। इस हदीस को इब्ने खुज़ैमा ने इन शब्दों के साथ अपनी सहीह (3/191, हदीस संख्या : 1887) में रिवायत किया है और कहा है : यदि यह खबर (हदीस) सही है। कुछ हवालों, उदाहरण के तौर पर मुंज़िरी की किताब (अत-तर्ग़ीब वत-तर्हीब 2/95) से “इन्” (अर्थात यदि, अगर) का शब्द गिर गया है। अतः लोगों ने यह समझा कि इब्ने खुज़ैमा ने कहा है कि यह खबर सही है, हालांकि उन्हों निश्चित रूप से यह बात नहीं कही है। इसे महामिली ने अपनी किताब अमाली (293) में और बैहक़ी ने अपनी किताब शुअबुल ईमान (7/216) और फज़ाईलुल औक़ात (पृष्ठ : 146, हदीस संख्या : 37) में, अबुश्शैख इब्ने हिब्बान ने अपनी किताब (अस्सवाब) में, अस्साआती ने अपनी किताब “अल-फतहुर्रब्बानी” (9/233) में उनकी ओर निसबत की है, तथा सुयूती ने इसे अपनी किताब (अद्दुर्रुलमंसूर) में उल्लेख किया है और कहा है : इसे अल उक़ैली ने वर्णन किया है और इसे ज़ईफ करार दिया है। तथा अल-असबहानी ने अपनी किताब “अत-तर्ग़ीब” में, तथा अल-मुत्तक़ी ने अपनी किताब “कंज़ुल उम्माल” (8/477) में उल्लेख किया है, इन सब ने सईद इब्नुल मुसैयिब के माध्यम से सलमान अल-फारिसी रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है। यह हदीस दो कारणों से ज़ईफ (मकज़ोर) है और वे दोनों निम्नलिखित हैं : 1- इसके इसनाद के अंदर विच्छेद पाया जाता है, क्योंकि सईद इब्नुल मुसैयिब ने सलमान फारिसी रज़ियल्लाहु अन्हु से नहीं सुना है। 2- इसकी सनद में “अली बिन ज़ैद बिन जुदआन” नामक एक रावी (वर्णन कर्ता) हैं जिनके बारे में इब्ने सअद ने कहा है कि : उनके अंदर कमज़ोरी पाई जाती है और उनकी हदीसे से दलील नहीं पकड़ी जायेगी। तथा अहमद, इब्ने मईन, नसाई, इब्ने खुज़ैमा और अल-जौज़जानी वगैरह ने उन्हें ज़ईफ करार दिया है जैसाकि “सियर आलामुन्नुबला” (5/207) में है, और अबू हातिम अर्राज़ी ने इस हदीस पर मुन्कर होने का हुक्म लगाया है, इसी तरह की बात एैनी ने “उमदतुल क़ारी” (9/20) में कही है, तथा इसी के समान बात शैख अल्बानी ने “सिलसिलतुल अहादीसिज़्ज़ईफा वल मौज़ूआ” (2/262, हदीस संख्या : 871) में कही है। इस तरह इस हदीस के इसनाद का ज़ईफ होना स्पष्ट होगया, तथा इसके मुताबअत (यानी इसके अर्थ के समर्थन) में जो हदीसें हैं वे सब भी ज़ईफ हैं और मुहद्दिसीन ने उनके ऊपर मुन्कर होने का हुक्म लगाया है, इसके अतिरिक्त वे ऐसी बातों पर आधारित हैं जिनका साबित होना काबिले ग़ौर (शोचनीय) है, उदाहरण के तौर पर महीने के तीन हिस्से करना : पहले दस दिन रहमत के, फिर मग्फिरत के, फिर जहन्नम से मुक्ति के, जबकि इस पर कोई प्रमाण नहीं हैं, बल्कि अल्लाह का फज़्ल और कृपा बहुत महान और विस्तृत है, और रमज़ान का पूरा महीना रहमत और मग़्फिरत का है, और हर रात में अल्लाह के जहन्नम से मुक्त किए हुए कुछ बंदे होते हैं, इसी तरह इफ्तार के समय भी, जैसाकि इसके बारे में हदीसें प्रमाणित हैं। तथा हदीस के अंदर यह है कि : (जिस व्यक्ति ने उसमें किसी भलाई के काम के द्वारा (अल्लाह की) निकटता तलाश किया तो वह ऐसे ही है जैसे किसी ने उसके अलावा में कोई फरीज़ा अदा किया) जबकि इस बात पर कोई दलील नहीं है बल्कि नफ्ल, नफ्ल है और फरीज़ा, फरीज़ा है, चाहे रमज़ान में हो या रमज़ान के अलावा में। तथा हदीस में है कि : (जिसने इस महीने में कोई फर्ज़ अदा किया तो वह ऐसे ही है जैसे किसी ने उसके अलावा में सत्तर फरीज़ा अदा किया) इस निर्धारण के अंदर भी गौर करने का स्थान है, क्योंकि एक नेकी दस गुना से सात सौ गुना तक बढ़ा दी जाती है, चाहे रमज़ान में हो या उसके अलावा में, और इससे केवल रोज़े का मामला ही अलग (विशिष्ट) है, क्योंकि उसका प्रतिफल बहुत ही बड़ा है उसके मात्रा की कोई सीमा नहीं है, क्योंकि हदीस क़ुद्सी है किः “ आदम के बेटे का प्रति कार्य उसी के लिए है सिवाय रोज़े के, निःसंदेह वह मेरे लिए है और मैं ही उसका बदला दूँगा।” यह हदीस अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से बुखारी व मुस्लिम में वर्णित है। अतः ज़ईफ हदीसों से बचना चाहिए, और उन्हें वर्णन करने से पहले उनकी प्रामाणिकता के स्तर को सुनिश्चित कर लेना चाहिए, और रमज़ान की फज़ीलत में सही हदीसों का चयन करने का अभिलाषी होना चाहिए। अल्लाह तआला सब को तौफीक़ प्रदान करे, और हमारे रोज़े, क़ियामुल्लैल और अन्य सभी आमाल को स्वीकार करे। अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है। डॉक्टर अहमद बिन अब्दुल्लाह अल-बातिली डॉक्टर अहमद बिन अब्दुल्लाह अल-बातिली