Game da Fatawa

kwanan wata :

Fri, May 22 2015
Tambaya

क्या हमारे लिए यह दुआ करना जाइज़ है कि अल्लाह तआला हमें नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ एकत्र करे ॽ

मेरा प्रश्न दुआ से संबंधित है, चुनाँचे पिछले एक प्रश्न में इस बात की दुआ कि मनुष्य पैगंबर के हाथ से ऐसा खुशगवार घूँट पिए कि उसके बाद कभी प्यासा न हो के बारे में आप ने हमें अवगत कराया कि इस को प्रचलित करना उचित नहीं है, और इस की दुआ के बारे में कोई चीज़ वर्णित नहीं है। हमारा प्रश्न यह है कि : क्या यह दुआ करना जाइज़ है कि अल्लाह तआला हमें रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ हौज़ कौसर के पास और स्वर्ग में एकत्रित करे ॽ
Amsa
Amsa

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

यह दुआ करना कि अल्लाह तआला हमें रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ हौज़ कौसर के पास और स्वर्ग में एकत्रित करे : एक शुद्ध और सराहनीय दुआ है ; हमारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमें सूचना दी है कि वह सबसे पहले हौज़ कौसर पर आयेंगे, और यह कि आपके हौज़ से कुछ ऐसे लोगों को हटाया जायेगा जो आपके हौज़ से पीने के अधिकृत न होंगे, वे ऐसे लोग होंगे जिनका निफाक़ (पाखंड) सर्वज्ञात होगा, या जिसके अंदर अनुसरण (पैरवी) का लक्षण नहीं होगा, और वह (सज्दे के असर से) चेहरे और (वुज़ू के असर से) वुज़ू के अंगों – हाथ पैर का चमकदार और सफेद होना है, इसी प्रकार उस आदमी को भी हौज़ कौसर से दूर भगाया जायेगा जो आपका अनुयायी नहीं होगा। इस उम्मत (समुदाय) के सम्मान के तौर पर ऐसा होगा, और इसलिए कि प्रति उम्मत अपने ईश्दूत के साथ जा मिले ताकि आपके हौज़ से पानी पिए।

तथा प्रश्न संख्या (125919) का उत्तर देखें। उसके अंदर उन लोगों का विस्तार के साथ उल्लेख है जिन्हें हौज़ से हटाया जायेगा।

अतः यह दुआ कि अल्लाह तआला दुआ करने वाले को हौज़ के पास एकत्र करे एक अच्छी दुआ है, इसी तरह उस दुआ के बारे में भी कहा जायेगा कि उसका पालनहार उसे उसके नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ स्वर्ग में एकत्र करे, बल्कि यह दुआ करने वाले के सर्वोच्च संकल्प को दर्शाता है, लेकिन इस संकल्प के साथ महान कार्यों की आवश्यकता होती है।

रबीआ बिन कअब अल-असलमी रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : मैं अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ रात बिताता था तो मैं आपके वुज़ू का पानी लाया और आपकी आवश्यकता पूरी की तो आप ने मुझ से फरमाया : (तुम माँगो)। तो मैं ने कहा : मैं जन्नत में आपका संगत माँगता हूँ। आप ने फरमाया : (क्या इसके अलावा कोई और माँग हैॽ) मैं ने कहा : बस वही है। आप ने फरमाया : (तो तुम अपने नफ्स पर अधिक से अधिक सज्दे के द्वारा मेरा सहयोग करो). इसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 489) ने रिवायत किया है।

इब्ने अल्लान शाफई रहिमहुल्लाह - अल्लाह उन पर दया करे - ने फरमाया :

“तो मैं ने कहा: मैं जन्नत में आपका संगत माँगता हूँ।” अर्थात : मैं उसके अंदर आपके साथ रहूँ आपसे निकट रहूँ ; आपकी दृष्टि और निकटता से लाभान्वित हूँ ताकि आप से अलग न रहूँ। अतः ऐसी स्थिति में कोई आपत्ति पैदा नहीं होती है कि “वसीला” का पद समस्त पैगंबरों के बीच आपके लिए विशिष्ट है, चुनाँचे आपके उस पद के अंदर कोई भेजा हुआ पैगंबर भी आप से बराबरी नहीं रखता है, दूसरों की बात तो बहुत दूर है ; इसलिए कि इस हदीस का मतलब यह है कि उन्हें आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से संपूर्ण निकटता का स्थान और पद प्राप्त हो, तो उसे संगत के द्वारा इंगित किया गया है।”

“दलीलुल फालेहीन लि-तुरुक़ि रियाज़िस्सालेहीन” (1/392) से समाप्त हुआ।

तथा “मैं जन्नत में आपका संगत माँगता हूँ।” का अर्थ यह है कि : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से अनुरोध है कि आप उनके लिए इसकी दुआ करें, क्योंकि यह बात निश्चित रूप से ज्ञात है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम किसी को स्वर्ग में प्रवेश दिलाने के मालिक नहीं हैं।

तथा इब्नुल क़ैयिम रहिमहुल्लाह ने फरमाया :

“अल्लाह की क़सम इस संकल्प की सराहना कीजिए, उसका मामला कितनवा आश्चर्यपूर्ण है और वह कितना भिन्न और विचित्र है, एक संकल्प वह है जो सिंहासन के ऊपर की अस्तित्व के साथ संबंधित है, और एक संकल्प वह है जो गंदगियों और मल के आस पास घूमती है, और सामान्य लोग कहते हैं कि : “हर मनुष्य का मूल्य वही है जिसे वह अच्छी तरह कर सकता है”, तथा विशेष लोग कहते हैं कि : “मनुष्य का मूल वही है जिसे वह माँगता है।” और सबसे विशिष्ट लोग कहते हैं कि: “आदमी का संकल्प उसकी माँग से पता चलता है।”

और यदि आप संकल्पों की श्रेणियों को जानना चाहते हैं तो रबीआ बिन कअब अल-असलमी रज़ियल्लाहु अन्हु के संकल्प को देखिए जबकि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनसे कहा कि (तुम मुझसे माँगो), तो उन्हों ने कहा : “मैं जन्नत में आपका संगत माँगता हूँ।” जबकि कोई दूसरा होता तो अपने पेट को भरने, या अपने शरीर को छुपाने की चीज़ की माँग करता।”

“मदारिजुस्सालेकीन” (3 / 147) से समाप्त हुआ।

 

और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।